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Showing posts from April, 2020

तू ही तू है

एक दौड़ सी लगी रहती है जीने  में एक आग सी बनी रहती है सीने में क्यों किसी आस के पीछे हमेशा भागता हूँ क्यों अपनी प्यास में किसी को तलाशता हूँ एक प्यास पूरी होती है , सकून मिलता है फिर एक और प्यास को , जनम मिलता है इस भगन्दर को , कब तक भगाएगा इस समंदर को , कब तक फेहलायेगा यह में समझ गया , तेरा कोई कारण है और मेरी बैचनी ,  अ-कारण  है तेरी ख़ुशी में , मेरी ख़ुशी हो तेरी रज़ा में , मेरा माज़ा हो ऐसी शख्शियत , मुझे बना दे मौला ऐसी मिलकियत , मुझे दिला दे मौला हर प्यास में , तेरा नाम हो हर आस में , तेरा काम हो हर ताज में , तेरा सकून  मिले हर साज में , तेरा सुर सजे अब हर आस , हर प्यास तू है अब हर आस , हर प्यास तू है तू ही तू है , तू ही तू है , तू ही तू है                                                          ---विशाल Since birth, we are accustomed to run after our desires. Desire re...

खुदा तुझे ही कहते है

तुझे देख वही , रुक जाता हूँ तुझे देख वही , रुक जाता हूँ आखें बंद करता हूँ , तुझे पाता हूँ अब तू कहे , इसमें मेरा क्या कसूर अब तू कहे , इसमें मेरा क्या कसूर एक तरफ चाहत में , यही है दस्तूर यह जनता हूँ , तुझे पाना मुश्किल है यह जनता हूँ , तुझे पाना मुश्किल है लेकिन तेरी एक , नज़र तो मुमकिन है अब तो कहानी , आगे बढ़ गयी अब तो कहानी , आगे बढ़ गयी तुझे न देख , हालत बावलो सी हो गयी मेरा हाल देख , तू बेहाल न हो जाये मेरा हाल देख , तू बेहाल न हो जाये इस ख्याल से , अपना ख्याल रखता हूँ तेरी एक नज़र को , खुदाई बना चला हूँ तेरी एक नज़र को , खुदाई बना चला हूँ तेरी एक झलक को , रिहाई बना चला हूँ यह हो न हो , इश्क़ इसे ही कहते है यह हो न हो , इश्क़ इसे ही कहते है तू हो न हो , खुदा तुझे ही कहते है                                                --विशाल

रहने दो , मुझको मुझमे

रहने दो , मुझको मुझमे दुसरो में , दूसरा होता हूँ दुसरा आकर्षण , आकर्षित  करता है दर्पण में ,खुद को नापता है दुसरो में , मैं छिन भिन होता हूँ खुद में , दुसरो को ढूंढ़ता हूँ दुसरे शब्द , लुभाते हैं  खुद को , छलते हैं   मुझको मुझमे, रहने दे ऐ खुदा  दुसरो में , तो गुलाम बन जाता हूँ ना रख , गुलामो की महफ़िल में या मुझको , मुकम्मल कर दे रहने दो , मुझको मुझमे दुसरो में , दूसरा होता हूँ                                                   - विशाल    जैन  रहने दो , मुझको मुझमे दुसरो में , दूसरा होता हूँ We are, most of the people, live life of others. How? We always idolize somebody and start following their path. Or we copy others style, way of talking, walking, feeling, behaving etc. Or keeping a face which is not our original one. Which is very different from the original when we born. When you born you do no...

Love me, Don't lust me

Love me, don't lust me Love me, don't possess me Love me, don't object me Being with you, feel bliss Being with you, no hurry Even being naked, no worry Being without me, feel free Being without me, let me free Even company other, enjoy freely Love me, know me Love me, understand me Even misunderstand, accept me Love me, mindlessly Love me, like godly Even in hate, love divinely Love me, don't lust me Love me, don't possess me Love me, don't object me                                                      - Vishal Jain Its a general situation develops between friendship of a boy and girl. Even friendship between boys and between girls, but especially between boy and girl. This may be due to attraction between opposite sex or feeling of possession develops in any one or both of them. This happens among friendship of same ...