एक दौड़ सी लगी रहती है जीने में एक आग सी बनी रहती है सीने में क्यों किसी आस के पीछे हमेशा भागता हूँ क्यों अपनी प्यास में किसी को तलाशता हूँ एक प्यास पूरी होती है , सकून मिलता है फिर एक और प्यास को , जनम मिलता है इस भगन्दर को , कब तक भगाएगा इस समंदर को , कब तक फेहलायेगा यह में समझ गया , तेरा कोई कारण है और मेरी बैचनी , अ-कारण है तेरी ख़ुशी में , मेरी ख़ुशी हो तेरी रज़ा में , मेरा माज़ा हो ऐसी शख्शियत , मुझे बना दे मौला ऐसी मिलकियत , मुझे दिला दे मौला हर प्यास में , तेरा नाम हो हर आस में , तेरा काम हो हर ताज में , तेरा सकून मिले हर साज में , तेरा सुर सजे अब हर आस , हर प्यास तू है अब हर आस , हर प्यास तू है तू ही तू है , तू ही तू है , तू ही तू है ---विशाल Since birth, we are accustomed to run after our desires. Desire re...